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मोदी के नाम पर हंगामा क्यों है बरपा – Jagran Junction Forum

vechar veethica
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मोदी के नाम पर हंगामा करने वालों के पास मुख्य रूप से दो ही तर्क है .
१- मोदी तानाशाह हैं . २- मोदी पर २००२ के गुजरात दंगो का कलंक है
चलें इन तर्कों की हकीकत का विश्लेष्ण करते हैं
आज भारत की राजनीत को गौर से देखें तो आसानी से समझा जा सकता है की यहाँ कितना प्रजातंत्र है और कितनी तानाशाही . भारत जैसी विशाल इकाई और उसमे केन्द्रीयकृत शासन व्यवस्था में , वास्तव में पूर्ण प्रजातंत्र कभी संभव ही नहीं है . हमारे यहाँ जो शासन व्यवस्था स्वीकृत है , उसमे तानाशाही को ही प्रजातंत्र के छद्म आवरण में बुन कर प्रस्तुत किया जाता है . यह आज की राजनीत का कटु सत्य है की यहाँ की हरएक राजनितिक पार्टी किसी न किसी चेहरे विशेष के सहारे चल रही है . ( आज बी जे पी के पास कोई चेहरा नहीं है इस लिए वोह हाशिये पर खिसकती जा रही है ) पार्टियों का वोह चेहरा विशेष ही पार्टी में सब कुछ है , वोह ही आला कमान है . उसके आगे किसी और की कोई हैसियत नहीं है . यह क्या है ? क्या यह प्रजातंत्र के आवरण में तानाशाही नहीं है ?
इस पर अलग से बहेस हो सकती है की वास्तविक प्रजातंत्र केसे लाया जाये . परन्तु आज स्थति ये ही है की हम हर पांच साल बाद , अगले पांच साल के लिए एक नया तानाशाह ही चुनते हैं . फिर एक बार पाँच साल के लिए श्री नरेन्द्र मोदी ही क्यों नहीं ?
आज तानाशाही शब्द एक गाली के रूप में प्रयुक्त होता है . परन्तु राजनीत शास्त्र के विद्यार्थी जानते हैं कि अनेक शासन पद्धतियों मैं सर्वोतम शासन एक अच्छे तानाशाह का ही होता है . इसलिए तानाशाही न अपने आप अच्छी है और न ही बुरी . तानाशाह अच्छा है तो तानाशाही अच्छी है और अगर तानाशाह बुरा है तो तानाशाही बुरी है . आज कल यह जुमला बहुत प्रचलित है कि ‘ शक्ति शासक को भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति शासक को सम्पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है ‘ परन्तु सोचिये कि क्या कोई शासन बिना शक्ति के चल सकता है . बिना शक्ति के शासन का नमूना आज कि यु पि ये सरकार सामने है . क्या प्राचीन काल में एक छत्र राज करने वाले राजा अच्छे शासक नहीं हुए . फिर यदि श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आप को एक कर्मठ , ईमानदार और उच्च कोटि का प्रशासक सिद्ध कर दिया है तो फिर उनके हाथ में देश के शासन कि शक्ति सोपने में क्यों आपति होनी चाहिए .
रही २००२ के गुजरात दंगो कि बात . तो एसा तो नहीं है कि २००२ में पहली बार गुजरात में दंगे हुए हों . गुजरात में दंगो का एक लम्बा इतिहास रहा है . देश के अनेक स्थानों पर भी पूर्व में दंगे हुए है . लेकिन कभी किसी दंगे लिए तत्कालीन शासक प्रमुख को इस प्रकार जिम्मेदार नहीं ठहराया गया जैसा श्री नरेन्द्र मोदी को बताया जा रहा है . हर दंगा दुर्भाग्यपूर्ण है . दोषियों को सजा मिलनी ही चाहिए . दोषी और दोष का निर्धारण कौन करेगा . अदालत या तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी और मानवाधिकारवादी . इन लोगों ने तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर पहले ही निर्णय ले लिया है . और अब यह लोग अदालतों की तमाम कलाबाजियों द्वारा , जाँच कमीशनों के संजालों द्वरा , झूठी सच्ची गवाहियाँ गढ़ कर , गवाहियों को तोढ़ मरोढ़ कर अपना निर्णय न्यानालय के मुह में ठूसना चाहते हैं . यह बात दूसरी है कि गत दस सालों से वोह इसमें कामयाब नहीं हो पाए हैं , पर अपने अभियान में अभी भी जुटे हैं .
इतिहास की नकारत्मकता की उपेक्षा करने और वर्तमान की सकारमकता के साथ जीने का उपदेश करने वाले बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का वर्तमान सन २००२ पर आ कर ठहर गया है . वोह उसके आगे जाना ही नहीं चाहते . वोह २००२ के बाद का गुजरात देखना भी नहीं चाहते , जिसमे समाज के हर वर्ग को विकास और सुशासन का लाभ प्राप्त हुआ है . समाज का हर वर्ग इस सत्य को स्वीकार करता है , परन्तु यह धर्मनिरपेक्षवादी और मानवाधिकारवादी समाज के एक वर्ग को भ्रमित कर इस सत्य को स्वीकार करने और बोलने से रोक रहे हैं . धर्मनिरपेक्षवादियों के तो राजनितिक स्वार्थ हैं , इस लिए वो इसको अनंत काल तक जीवित रखना चाहे गे . और यह मानवाधिकारवादी कोन हैं ? यह मानवाधिकार संगठन क्या है ? यह है यू . ऍन . ओ के माध्यम से , अमेरिका और उसके पिछलग्गू साम्राज्यवादी देशो द्वारा , तीसरी दुनिया या विकासशील देशों में , आदर्श के नाम पर अपने हितो के संगरक्षर्ण , पोशर्ण और हस्तक्षेप हेतु स्थापित किया हुआ संगठन . यह संगठन श्री लंका , बंगलादेश और भारत जेसे देशो में मानवाधिकार हनन पर अत्यधिक मुखुर हो उठता है , पर अपने आका देशो की पाकिस्तान , अफगानिस्तान और ईराक आदि देशों में की जा रही करतूतों पर मौन ही रहता है . गुजरात के संधर्भ में उनका एक ही लक्ष है की एक योग्य , ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति को इसलिए कलंकित करो , जिससे भारत को वो समर्थ शासक न मिल सके जो कल भारत को एक महाशक्ति बना कर उनके सामने प्रस्तुत कर दे
इसलिए यदि श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो किसी पार्टी विशेष का ही नहीं वरन भारत का भी उद्धार होगा . यह महत्वपूर्ण है .

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