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राष्ट्रपति पद की मर्यादाये दांव पर – Jagran Junction Forum

vechar veethica
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बासठ वर्षीय गणतंत्र में अब तक १२ राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं और अब तेरवां राष्ट्रपति चुना जा रहा है . परन्तु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने लम्बे अन्तराल के बाद भी राष्ट्रपति चुनने की कोई स्वस्थ परम्परा स्थापित नहीं हो सकी है . पहले तीन चुनावो में एक स्वस्थ परम्परा के निर्माण के संकेत मिले थे परन्तु बाद में वोह सब तहस नहस हो गये . कालांतर में कलाम साहब के रूप में एक छोटा सा प्रयास हुआ था लेकिन वोह भी सत्ता के अहंकार में तिरोहित हो गया . राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन में राजनेता जो कलाबाजियां दिखाते हैं और राजनितिक दल जो पेंतरे बाजियां चलते हैं उससे आज राष्ट्रपति पद की क्या स्थिति हो गयी है ? क्या यह अंग्रेजों द्वारा सृजित ‘सर ‘ जेसा सम्मान है जो अपने बफादारों को दिया जाता है . या यह कोई ख़िताब है जिससे शहंशाहे आला कमान उसको नवाजते जिससे वोह खुश होते हैं . क्या यह किसी को सक्रिय राजनीत से ख़ारिज करने का उपकर्म है , या भविष्य में अपने हितों की सुरक्षा की गारंटी . राष्ट्रपति पद हमारे राष्ट्र का सर्वोच्च संवेधानिक पद है . उसके साथ इस तरेह का मखोल खेदजनक है . आज योग्यता की डींग हांकने वाले तब कहाँ थे , जब एक महिला का केवल महिला होना ही किसी की तमाम योग्यताओं पर भारी बता दिया गया था . महिला होना , दलित होना , किसी संप्रदाय अथवा जाती का होना , इस सम्मानित पद के लिये योग्यता अथवा अयोग्यता के रूप में परभाषित नहीं होना चाहिए .
गणतंत्र परम्पराओं से ही परिपक्व होता है . इंग्लेंड का सारा संविधान ही परम्पराओं से निर्मित है . वहां ‘हॉउस आफ कामंस’ का अध्यक्ष , जिस भी छेत्र से चुनाव में उतरता है , उसके विरुद्ध कोई भी नामांकन नहीं करता . वोह निर्विरोध चुना जाता है . कोई भी नियम किसी को उसके विरुद्ध चुनाव में आने से नहीं रोकता है . लेकिन वहां यह परंपरा है और वे उसका सम्मान करते हैं . क्या हमारे यहाँ एसी कोई परम्परा कम से कम इस सर्वोच्च पद के लिए विकसित नहीं होनी चाहिए थी ? क्या ही अच्छा होता यदि नेता पक्ष और विपक्ष दोनों मिल कर निवृतमान राष्ट्रपति के पास जाते और उससे पूछते की क्या वोह एक और अवधि के लिए यह पद स्वीकार करेगे . यदि वोह स्वीक्रति देते तो उनको निर्विरोध चुना जाता . उनके अस्वीकार करने पर उपराष्ट्रपति से पूछा जाता . उनके भी अस्वीकार करने पर क्रमानुसार यथायोग्य और सम्मानित व्यक्तियों से पूछने की परम्परा स्थापित की जाती . इससे इस पद की गरिमा सुरक्षित रहती .
नियमों , कानूनों और संविधान से मात्र गणतंत्र का स्वरुप निर्धारित होता है . परम्पराओं से गणतंत्र की आत्मा परिपुष्ट होती है . कहा जाता है की बिना इंसानों के घर में भूतों का वास होता है ; बिना विचारों के दिमाग में शेतान का निवास होता है . इस ही प्रकार बिना परम्पराओं के गणतंत्र में निकृष्ट तानाशाही का प्रवास होता है . इस तानाशाही के ही नतीजे हैं , स्वार्थ , साजिशें और षड़यंत्र जो इस चुनाव में भी साफ तौर पर पहचाने जा रहे हैं , चाहे इनको कितने ही आदर्शवादी मुखोटों में सजा कर प्रस्तुत किया जाये .
आज आप के पास सत्ता की शक्ति है , इस लिए आप कह सकते हैं की ‘लाईन वहीँ से शुरू होगी जहाँ पर हमारे कदम थमे गे ‘ लेकिन इससे गणतंत्र नहीं बनेगा . इससे निकृष्ट तानाशाही ही विकसित हो गी .
राष्ट्रपति पद पर वो व्यक्ति आसीन होना चाहिए , जिससे यह पद गोरवान्वित हो . राष्ट्रपति पद किसी को गोरवान्वित करने के लिए नहीं होना चाहिए .

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