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एडल्ट यानी बालिग अर्थात बढ़ा होना . कोई बढ़ा केसे होता है ? इसके दो पक्ष हैं . पहला है सकारात्मक पक्ष , जिसके लक्षण हैं परिपक्वता , गंभीरता ,कलाग्र्हहता , सुरुचिता आदि . दूसरा पक्ष है नकारात्मक , जिसके लक्षण हैं सिगरेट पीना , शराब पीना , वर्जित स्थानों पर जाना , एडल्ट फ़िल्म देखना आदि आदि . नकारात्मक पक्ष के अनुकरण से बढ़ा होने का छद्म एहसास तो हो जाता है ,परन्तु उससे कोई वास्तव में बढ़ा नहीं बन सकता . दुर्भाग्य से आज के युग मे नकारात्मकता का स्तर ऊँचा है और किशोरों एवं युवाओं मे बढ़ा बनने का धेर्य कम और अधीरता अधिक है . इसलिए वे दूसरा पक्ष चुनते हैं , जो अपेक्षाकृत सरल प्रतीत होता है
जब हम शांत मनः स्थिति मे होते हैं तब हमारी भाषा अत्यंत संयत , सभ्य और सुसंस्कृत होती है . जब हम क्रोध के आवेश मे होते हैं तब हमारी भाषा नितांत आवरण मुक्त हो जाती है . या हम कह सकते हैं की तब हम भाषा के स्तर पर नग्न हो जाते हैं . ऐसी ही भाषा से युक्त एक फिल्म कुछ दिन पूर्व आई थी , तब कहा गया था की अब हमारा सिनेमा बालिग हो गया है . बालिग होने का यह मापदंड बाजारवाद और समाज में नकारात्मकता की प्रचुरता का परिणाम है . बाजारवाद और नकारात्मकता के साये में किसी भी भावनात्मक आवेग की अभिव्यक्ति नग्न ही हो गी . चाहे उसका माध्यम कहानी, उपन्यास , कविता अथवा सिनेमा आदि कुछ भी हो . सिनेमा के संधर्भ में हम इसको इस प्रकार कह सकते हैं की जब हम बाजारवाद और नकारात्मकता के दबाव में सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति की क्षमता खो देते हैं , तब हम एडल्ट फिल्मे बनाते हैं .
पहले सिनेमा में प्रतीकों के माध्यम से अनकही बातों को इस प्रकार सुरुचिपूर्ण ढंग से कह दिया जाता था की परिपक्व जन तो उसको समझ लेते थे और किशोरों और बालकों के संवेदनशील मानस सुरक्षित रहते थे . आज सिनेमा की इस अक्षमता को आयु और समय के छन्नों से छान कर सार्थक सिद्ध नहीं किया जा सकता . जो गलत है वोह किसी भी आयु वर्ग के लिए गलत है . जो गलत है वोह रात अथवा दिन किसी भी समय के लिए गलत है . सिगरेट या शराब बालकों के लिए वर्जित और बढ़ों के लिए अनुमत क्यों . क्या इनके हानीकारक प्रभाव आयु का लिहाज करते हैं . क्या इनको रात में छुप कर पीने से इनका असर कुछ कम हो जाता है . तो फिर एक वासनामयी , कलाविहीन , कुरुचिपूर्ण फिल्म रात ग्यारह बजे के बाद केसे किसी आयु वर्ग के लिए औचित्यपूर्ण हो सकती है .
जो चीज , जो विचार , जो कार्यकर्म व्यक्ति को व्यक्ति से जोढ़ता है , वोह धार्मिक है , वोह नेतिक है , वोह स्तुति के योग्य है . टेलीविजन पर ऐसे ही कार्यक्रमों की आपेक्षा है . वोह कार्यक्रम ही क्या , जो परिवार को बांटे. जिसको देखने के लिए परिवार के बढ़ों को बालकों के सोने का इंतजार करना करना पढ़े . इसको केसे औचित्यपूर्ण माना जा सकता है . मान लीजिये बालकों को सुला कर रात ग्यारह बजे के बाद आपने यह कार्यक्रम देख भी लिया तो आप बालकों के सामने कोन सा आदर्श प्रस्तुत करेगे , उनको क्या प्रेरणा देगे . याद रखें , नकारात्मकता प्रत्यक्ष ही नहीं परोक्ष रूप से भी प्रभावित करती है . सिगरेट का धुआं केवल पीने वाले को ही नहीं वरन आस पास के लोगों और वातावरण को भी प्रभावित करता है . यह ही कार्य रात ग्यारह बजे के बाद देखी जाने वाली एडल्ट फिल्म भी करेगी . इसकी विकृतियों के प्रभाव आयु और समय के मोहताज नहीं हैं .
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