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वोटों का वादा कारोबार

vechar veethica
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एक तथाकथित समाजवादी पिताश्री जब सत्ता में थे तब उन्हों ने अपने प्रदेश के शिक्ष्रण संस्थानों की वार्षिक परीक्षाओं में नक़ल की जिस प्रकार छूट दी हुयी थी वोह आज भी एक जीवंत इतिहास है . इस ही का परिणाम था की पिताश्री तो दोबारा सत्ता पर आसीन हो गए , पर प्रदेश में ‘रोजगार असमर्थ’ ( Unemployable ) बेरोजगारों की एक फोज़ तय्यार हो गयी , जिसको उनका समर्थक होना ही था . उनकी उद्दंताओं , अराजकताओं और गुंडागर्दी से जनता त्रस्त हो गयी . अन्तत पिताश्री को सत्ता से वंचित होना पढ़ा . गत चुनाओं में उन्हों ने उन ‘ रोजगार असमर्थ ‘ बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता के साथ साथ हाईस्कूल और इंटर पास प्रत्येक विद्यार्थी को टेबलेट और लैपटॉप देने का वादा कर के फिर से सत्ता प्राप्त करी , और उसको अपने पुत्र को सौंप दिया . क्योकि पिताश्री को अब और ऊँची कुर्सी चाहिए थी . पुत्र ने भी राजनीतिज्ञों की स्थायी प्रक्रति के विपरीत फटाफट एक वर्ष के अंदर ही बेरोजगारी भत्ता ,लैपटॉप आदि बाँट दिया . हो सकता है कि उसकी यह तत्परता रंग लाये और पुत्र शीघ्र पित्रश्रण से उऋण हो जाये . अब सोचने कि बात यह है कि क्या यह ‘ पूरे होते वादे ‘ हैं या ‘ वोटों का वादा कारोबार ‘
वोह धन जो ‘रोजगार असमर्थ ‘ (unemployable) बेरोजगारों को रोजगार समर्थ (employable) बनाने में व्यय हो सकता था , उसे बेरोजगारी भत्ते के रूप में बाँट दिया गया . क्यों की कल वोह पुत्र को पित्रश्रण से उऋण करने में सहायक हों गे . जर्जर भवन , टाट-पट्टी , बुनियादी सुविधाओं का आभाव , चार – चार कक्षाओं को एक साथ पढ़ाता अध्यापक अथवा अध्यापिका , यह है प्रदेश के सरकारी बेसिक शिक्षा की सर्वविदित तस्वीर . जिस धन से इसका सुधार एवं विकास हो सकता था , उस धन से इन्टर पास छात्रों को लैपटॉप बाँट दिया . क्यों ? क्यों की बेसिक के छात्र वोट नहीं दे सकते . इन्टर के छात्र वोट दे गे . लेकिन शिक्षा की खोखली बुनियाद पर बुलंद इमारत कैसे बनेगी ?
घूस दे कर वोट प्राप्त करना वैधानिक रूप से अपराध है . स्वच्छ चुनाव और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह अनवार्य हे . लेकिन जैसे शातिर वकील कानून की दराजों से स्याह को पार कराकर सफेद बनाने के माहिर होते हें , वैसेही यह राजनीतिज्ञ इन घूसों को वादों का बहरूपिया बना कर चुनावी मेनिफेस्टो के माध्यम से चुनाव आयोग को धता बता कर इसको वैधानिक कह देते हें . परन्तु यह नैतिक तो कतई नहीं है .क्यों की इस से घूस का मूल चरित्र और राजनीतिज्ञों के मकसद नहीं बदलते हैं .
.आप कह सकते हैं ,की जब यह वैधानिक है तो यदि इससे किसी को को कुछ प्राप्त हो रहा है तो इसमें हानि ही क्या है . याद कीजिये कल सूरज ढल जाने के बाद पत्थर के बने बुतों से सायों ने निकल कर बताया था की किस किस को क्या क्या मिला था . कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले कल में लैपटॉप से कोई जिन्न निकल कर बताये की वोटों के इस वादा करोबार में किस को कुछ और किस को बहुत कुछ मिला .
वैसे भी एक जापानी कहावत है की ‘ दुनिया की सबसे महंगी वस्तु वोह होती है ,जो मुफ्त में प्राप्त होती है ‘. क्योकि उसका मुल्य आप को भविष्य में कई गुना अधिक रूप में अवश्य चुकाना होता है . शासन का उत्तरदायित्व नोजवानो को मुफ्त में चीजें बाँट कर उनका आत्मसम्मान अवनत करना नहीं वरन उनके हाथों को वो सामर्थ और छमता प्रदान करना है ,जिससे वो उन चीजों को स्वयं प्राप्त कर सकें .
जनता और विशेषकर नोजवानो से यह आग्रह है अपने देश में जनतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए अपने आत्मसम्मान को सदैव उन्नत रखें . वो दान देने वाले बने , दान लेन वाले नहीं .

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