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आडवाणी का अपराधी आर. एस. एस. – Jagran Junction Forum

vechar veethica
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आडवाणी जी ने सन २००५ में जिन्ना पर एक बयान क्या दिया , की उसके बाद आर. एस. एस. और विशेषकर तत्कालीन संघ प्रमुख श्री के. सी. सुदर्शन जिस प्रकार उन पर हमलावर हुए वह निहायत ही गैर जुम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण व्यव्हार था I आर. एस. एस. जैसे अनुशासित और संस्कारित कहे जाने वाले संगठन के मुखिया से उस प्रकार के आचरण की कतई आपेक्षा नहीं थी i आडवाणी जैसा प्रतिबद्ध कार्यकर्ता जिसने १४ वर्ष की आयु से ले कर अपना शेष जीवन आर. एस. एस. की विचारधारा और सिद्धांतों के लिए समर्पित कर दिया , उसके मात्र एक वक्तव्य पर बिना उनका पक्ष जाने , जिस प्रकार श्री के. सी. सुदर्शन , आर. एस. एस. और भाजपा के नेताओं ने आलोचनाओं की बौछार कर दी थी , वह नितांत दुर्भाग्यपूर्ण था i वास्तव में आडवाणी तो उस दिन ही अप्रसांगिक होगये थे I जहाँ से वह अपनी शक्ति और उर्जा प्राप्त करते थे , वह श्रोत बंद कर दिया गया था I उनको श्री हीन कर दिया गया था I
उस समय आर. एस. एस. जैसे संगठन से आपेक्षा थी कि आडवाणी जी की पाकिस्तान से लौटने की प्रतीक्षा की जाती और उनके आने पर संघ प्रमुख उनसे बात कर उनके उस वक्तव्य पर स्पष्टीकरण प्राप्त करते I यदि वह उससे संतुष्ट होते तो उनको पूर्ववत समर्थन और सम्मान जारी रखते और यदि उनको लगता की उनका कार्यकर्ता बिलकुल भटक गया है , बागी होगया है , तो उनको तत्काल अपने राजनितिक परिद्रश्य से हटा देते और संगठन की बागडोर किसी अन्य सक्षम नेता के हाथ में देदेते I परन्तु ऐसा नहीं हुआ I मुझको याद है तब टी. वि. के किसी चेनल पर एक रिपोर्टर ने प्रमोद महाजन से संघ प्रमुख के इस अप्रतियाशित व्यव्हार के बारे में पूछा था , तब उनका उत्तर था कि जब ब़ोस ही अनुशासनहीन होजाए तो क्या किया जा सकता है I ठीक ही है , ब़ोस के अनुशासनहीन होने पर अधीनस्थ कुछ नहीं कर सकते , परन्तु उसके दुष्परिनाम अधिनस्थों को ही भुगतने होते हैं i श्री के. सी. सुदर्शन की वह अनुशासनहीनता आडवाणी के प्रति अपराध था और भाजपा के लिए घातक I
भाजपा में अटलजी के राजनीत से सन्यास लेने के बाद , आडवाणी जी स्वाभाविक रूप से सबसे कद्दावर नेता थे I उनको यकायक अप्रसांगिक कर दिए जाने से भाजपा के शीर्ष नेत्रत्व में एक विशाल शून्य निर्मित होगया I उस शून्य को भरने के लिए दूसरी पंक्ति के नेताओं की प्रतिद्वन्दिता प्रारंभ होगयी I नेताओं के स्वार्थ , अहम् और महत्वकांक्षाएं प्रमुख होगयीं I वार्ड स्तर से लेकर शीर्ष स्तर तक हरेक नेता अपने गुट और अपने शक्ति प्रकोष्ठ गठित करने में व्यस्त होगया I पार्टी अपनी राह और उद्देश्यों से भटकती गयी I शीर्ष स्तर पर स्पष्ट नेत्रत्व के आभाव को सामूहिक नेत्रत्व कह कर बहलाया जाता रहा i इस नेत्रत्व हीनता अथवा श्री हीन और अप्रसांगिक व्यक्ति के नेत्रत्व में सन २००९ का आम चुनाव लढ़ा गया , जिसमे शर्मनाक हार का सामना करना पढ़ा , जो अप्रत्याशित नहीं था I
परन्तु आश्चर्य है की उस हार से भी कोई सबक नहीं लिया गया I भाजपा की कार्य शेली और दशा दिशा में कोई सुधार नहीं हुआ I २००९ के बाद भी भाजपा लगातार कमजोर होती गयी i इस दॊर के चुनावों , उपचुनावों के परिणाम इसके प्रमाण है i आडवाणी जी लगातार अपने सुझाव सलह और चेतावनियाँ देते रहे , परन्तु उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया I क्यों की उन पर से आर. एस. एस. का वरद हस्त हट चुका था I यह ही आडवाणी जी का वास्तविक दर्द है I जिस पार्टी को उन्हों ने जनसंघ से लेकर आजतक अपने खून पसीने से सींचा है , उसको इस प्रकार अपने सामने बर्बाद होते देखना वास्तव में दर्दनाक तो है ही I बिना पार्टी की कार्य शैली और दशा दिशा सुधारे , मात्र एक व्यक्ति की लोकप्रियता के सहारे चुनावों में विजय प्राप्त करना यदि उनको व्यवहारिक नहीं प्रतीत होता तो यह स्वाभाविक ही है I
इतनी सब उपेक्षा , तिरिस्कार और अपमान के बाद भी आडवाणी सदैव अनुशासन में रहे I कभी बगावत की नहीं सोची I आज भी संघ प्रमुख के एक इशारे पर अपना समस्त दर्द पी गये I इतिहास में जहाँ आडवाणी की प्रतिबध्ता और समर्पण का उल्लेख होगा , वहीं आर. एस. एस. द्वारा उनके प्रति किया गया अपराध भी लिखा जायेगा I

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