Menu
blogid : 1178 postid : 58

हिंदुत्व क्या और हिन्दू कौन ?

vechar veethica
vechar veethica
  • 31 Posts
  • 182 Comments

हिंदुत्व एक ऐसा लचीला शब्द है , जिसको कोई भी नाम दिया जा सकता है / कभी धर्म , कभी सम्प्रदाय , कभी जाति , कभी राष्ट्रीयता आदि को व्यक्त करने में प्रयुक्त होता रहा है / इस कारण यह विवादास्पत भी बहुत रहा है / कोई इस पर गर्व करता है , तो कोई इसको साम्प्रदायिक , रूढ़िवादी , कट्टरवादी आदि शब्दों से नवाजता है / चलिए अपने पिछले लेख धर्म और सम्प्रदाय के परिपेक्ष में विचार करते हैं की हिंदुत्व है क्या ?

हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों से लेकर , अर्वाचीन मान्य धर्म ग्रन्थ रामचरित्रमानस तक में कहीं हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं है / इसका प्रयोग मध्य काल से देखने में आता है / इस लिए यह अनादि नहीं है / हिन्दू शब्द सामान्यतः संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होता है / इसके मानने वालों के भिन्न भिन्न इष्ट और विभिन्न पूजा ,आराधना विधियाँ हैं / इस लिए कहा जा सकता है की हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है / इसकी पुष्टि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनेकों बार अपनी टिप्पणियों में की है /

जैसा की ऊपर कहा है , हिन्दू शब्द अनादी नहीं है , तो फिर इसका उदय कब , कहाँ और कैसे हुआ ? भारत के मध्यकालीन इतिहास के अनुसार पश्चिम दिशा में , सिन्धु नदी के उस पर से जो विदेशी आये उन्हों ने सिन्धु नदी के इस पार रहने वाले समस्त निवासियों को हिन्दू कह कर पुकारा / यद्यपि उस समय यहाँ पर अनेक सम्प्रदाय विद्यमान थे , पर उनके लिए वे सब हिन्दू ही थे / कालान्तर में यहाँ के समस्त निवासियों ने भी स्वयं को हिन्दू ही स्वीकार कर लिया /

तो क्या हिंदुत्व राष्ट्रीयता है ? हिन्दू कहे जाने वाले जन , भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी निवास करते हैं / कहीं वे बहुसंख्यक हैं , और कहीं अल्पसंख्यक / उनकी राष्ट्रीयता उन देशों के अनुसार भिन्न भिन्न है / इसके अतिरिक्त यहाँ के मूल निवासियों के कुछ सम्प्रदाय भी अपने को किसी भी रूप हिन्दू मानने से परहेज करते हैं / अनेक सम्प्रदाय जो प्रारंभ से ही हिन्दुओं में सम्मिलित माने जाते थे अब आज की विभेदकारी राजनीति के कारण , या भ्रमवश , अथवा स्वार्थवश अपने को हिन्दू मानने से इंकार करने लगे हैं / इस कारण हिंदुत्व राष्ट्रीयता भी नहीं हो सकता है /

तो क्या हिंदुत्व सम्प्रदाय है ? आजकल राजनीतिज्ञों का एक वर्ग हिंदुत्व को सम्प्रदाय सिद्ध करने की जी तोड कोशिश कर रहा है / परन्तु क्या ऐसा कुछ है ?अपने पूर्ववर्ती लेख में किसी सम्प्रदाय के जो मापदंड हमलोगों ने जाने थे , चलिये देखें की क्या हिंदुत्व उनको पूरा करता है ?
* हिंदुत्व का कोई प्रवर्तक नहीं है , जिसके उपरांत हिंदुत्व का प्रादुर्भाव हुआ हो /
* अन्य सम्प्रदायों की भांति हिंदुत्व की कोई एक सुनिश्चित पवित्र पुस्तक भी नहीं है /
* हिंदुत्व में किसी भी प्रकार की दीक्षा का प्रवधान नहीं है /

इसलिए हिंदुत्व सम्प्रदाय नहीं हो सकता है / यदि हिंदुत्व सम्प्रदाय नहीं है , तो हिंदुत्व साम्प्रदायिकता भी नहीं हो सकता /

हिंदुत्व से कभी किसी का निष्कासन नहीं होता / क्यों की जिसमे प्रवेश की ही कोई परम्परा नहीं है , उससे निष्कासन कैसे हो सकता है / यह बात अलग है कि मनुष्यों का कोई वर्ग स्वतः ही अपने को हिंदुत्व से अलग कर ले , अथवा अलग मान ले /

इसी प्रकार यदि कोई अपने को हिन्दू कहता है , तो इस पर भी कभी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती , और न ही उससे यह आपेक्षा कि जाती है कि वो कोई सुनिश्चित पूजा अथवा आराधना विधि अपनाये /
फिर हिंदुत्व है क्या ? हिंदुत्व एक विचार है / हिंदुत्व एक सोच है / जिसको स्वामी विवेकानन्द ने ११ सितम्बर १९८३ में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में अपने स्वागत का उत्तर देते हुए व्यक्त किया था

” में एक ऐसे धर्म का अनुयाई होने में गर्व का अनुभव करता हूँ , जिसने सारेसंसार को सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है / “
हिंदुत्व की इस सोच को और स्पष्ट करते हुए उन्हों ने उपनिषद से निम्न श्लोक प्रतुत किया था /

रुचिनां वैचित्र्ययाद्रजु कुटिल नाना पथ जुषाम् ।
नृणानेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव I I

अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न स्त्रोतों से निकल कर समुद्र में मिल जाती हैं / उसी प्रकार हे प्रभो ! भिन्न भिन्न रूचि के अनुसार विभिन्न मार्गों द्वारा जाने वाले जन अंत में तुझ में ही मिल जाते हैं /

उपरोक्त श्लोक के भावार्थ को एक बार फिर ध्यान से पढिये / क्या यह ही आशय ‘ धर्मनिरपेक्ष ‘ शब्द को देने के प्रयास नहीं करे जा रहे हैं ? कि सब अपने सम्प्रदाय के नियम , निषेध और सिद्धांतों का निष्ठापूर्वक पालन करें और साथ ही उसही प्रकार दुसरे सम्प्रदायों को भी सम्मान दें / क्या इस भाव के लिए ‘धर्मनिरपेक्ष ‘ शब्द उपयुक्त है ? ‘धर्मनिरपेक्ष’ एक नकारात्मक शब्द है / अर्थात धर्म से निरपेक्ष , या धर्म से विमुख / भारत जेसे धर्म प्रधान देश के लिए तो यह शब्द कतई उपयुक्त नहीं हो सकता / भारत में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को अर्थ जबरदस्ती दिए जाने के प्रयत्न हो रहे हैं , उस अर्थ कि वास्तविक और सकारात्मक अभिव्यक्ति हिंदुत्व है /

श्रीमद्भगवद्गीता किसी सम्प्रदाय कि पवित्र पुस्तक नहीं है /यह तो सम्पूर्ण धर्म स्थापना का ग्रन्थ है / इसमें भी कहा गया है कि
ये यथा मां प्रपद्धन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।।
अर्थात ” जो कोई मेरी ओर आता है – चाहे जिस प्रकार हो – मै उसे प्राप्त होता हूँ / लोग भिन्न भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए मेरी ही ओर आते हैं /”

किसी मनुष्य की कोई भी पूजा या आराधना की विधि हो , उसका कोई भी इष्ट अथवा मान्यताएं ; यदि वोह उपरोक्त विचार को ईमानदारी और निष्ठां से स्वीकार करता है , तो वह हिन्दू है /

अंत में मै तो यह ही कहना चाहूँगा कि ;

हिंदुत्व को हिंदुत्व ही रहने दो , इसको कोई नाम न दो /

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh