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हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्यधारा में अवश्य स्थापित हो सकती है – contest

vechar veethica
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हाँ , आजादी के इतने वर्षों उपरांत देश में हिंदी का जो स्थान होना चाहिए था , वह नहीं है I इसके लिए यदि कोई जिम्मेदार है , तो हम स्वयं हिन्दीभाषी लोग हैं I जब देवनागरी लिपि में हिंदी राजभाषा के रूप में स्वीकृत हो गयी , तब हमने मान लिया कि अब अहिन्दीभाषी लोगों कि जिम्मेदारी है , कि वह हिंदी सीखें और सरकार की जिम्मेदारी है कि उनको हिंदी सिखाये I डा० चंद्रशेखर नायर , डा० रांगेय राघव , एम० वी० जम्बुनाथन , महीप सिह जैसे अहिन्दीभाषी साहित्यकारों को हिंदी में लिखते देख कर प्रसन्न होते रहे , कि हिंदी का प्रसार हो रहा है I मणिशंकर अय्यर , सुब्रामणियम स्वामी , चामलिंग जैसे अहिन्दीभाषी राजनेताओं को हिंदी में धाराप्रवाह भाषण देते देखकर खुश होते रहे कि हिंदी आगे बढ़ रही है I परन्तु कितने हिन्दीभाषी साहित्यकारों ने हिंदीतर किसी भरतीय भाषा में साहित्य रचा I किसी हिन्दीभाषी राजनेता ने क्या कभी किसी दक्षिण भारतीय भाषा में धाराप्रवाह भाषण दिया ? यदि नहीं तो क्यों ? ताली एक हाथ से नहीं बजती I क्या यह सब भाषाएँ हमारे देश कि अपनी भाषाएँ नहीं हैं ? जब हम देश की अन्य भाषाओँ को अपना जैसा प्यार और सम्मान नहीं देंगे , तब दूसरों से कैसे आपेक्षा की जा सकती है की वह हिंदी को वैसा ही सम्मान दें I

यदि हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रूप में स्थापित करना है , तो हम हिंदीभाषियों को किसी अन्य एक भारतीय भाषा को सिखने का संकल्प लेना होगा I ऐसा कर पाना कतई कठिन नहीं है I जब एक माह में अंग्रेजी बोलना सिखने के दावे किये जा सकते हैं , तो एक माह न सही , छ: माह अथवा एक वर्ष में हम अपने ही देश की एक अन्य भाषा बोलना क्यों नहीं सीख सकते ? सोनिया गाँधी विदेशी भाषाभाषी होकर हिंदी बोल सकती हैं , तो हम भारतीय होकर अपने ही देश की एक अन्य भाषा क्यों नहीं बोल सकते ? एक विदेशी भाषा अंग्रेजी में ‘ मालगुडी डेज ‘ जैसी रचना रची जा सकती है , तो ऐसीही कोई रचना किसी भारतीय द्वारा हिंदी में क्यों नहीं संभव है ? अवश्य संभव है , यदि हम हिंदीभाषियों में प्रबल इच्छाशक्ति हो और सब सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाएं मिलकर इस कार्य को मिशनरी भाव से करें I

भाषा के द्रष्टिकोण से दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण हैं , अतः हमलोगों को इन क्षेत्रों की भाषाओँ पर प्राथमिकता के आधार पर कार्य करना चाहिए I कालांतर में शेष भारत को क्रमबद्ध रूप से इसमें शामिल किया जा सकता है I

पूर्वोत्तर भारत के सम्बन्ध में मैं कुछ विशेष तथ्य रखना चाहूँगा I पूर्वोत्तर भारत में गारो , खासी , कुकी , मिजो , नागा , भोटिया , लेप्चा आदि अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं I इनकी भाषाओँ की अपनी कोई लिपि नहीं है I वह मात्र वाचिक परम्परा से अबतक अपना आस्तित्व बनाये हुए हैं I ब्रिटिश शासनकाल में ईसाई मिशनरियों ने इनकी बोलियों को रोमन लिपि देने के साथ ही ईसाई धर्मग्रन्थों को जनजातीय बोलियों में , रोमन लिपि के माध्यम से प्रस्तुत किया I जिससे वहां बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ , और परिणामस्वरूप आज वहां अलगाववाद का बोलबाला है I

वर्तमान में वहां की अधिकांश भाषाएँ रोमन लिपि में , और चंद कुछ भाषाएँ असमिया एवं बांग्ला लिपि में लिखी जा रही हैं I एक मात्र बोडो भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जा रही है I कितने हिन्दीभाषी जानते हैं कि , बोडो भाषा के लिए रोमन लिपि का विरोध करने के कारण माननीय विनेश्वर ब्रह्म १९,अगस्त २००० को शहीद कर दिए गये थे I वह बोलियाँ जो रोमन लिपि में लिखी जा रही हैं , उनको देवनागरी लिपि देने के प्रयास प्राथमिकता के आधार पर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से होना चाहिए I देवनागरी लिपि ध्वन्यात्मक है और इसमें स्वर एवं व्यंजन वर्णों कि संख्या रोमनलिपि से अधिक है I इसलिए उन जनजातीय बोलियों कि विशिष्ट ध्वनियों के साथ जो न्याय देवनागरी लिपि कर सकती है , वह रोमनलिपि कभी नहीं कर सकती I इसके साथ ही इससे जनजातीय समुह देश कि मुख्यधारा से जुडेगें , उनमें आपस में एकत्व बोध होगा जिससे अलगाववादी भावना पर विराम लगेगा I इन प्रयासों से हिंदी के साथ साथ वह सब भाषाएँ भी समर्द्ध होंगी I

आज हिंदी साहित्य का रचनालोक मात्र हिन्दीभाषी क्षेत्र तक ही सिमित है I ‘ तुंगभद्रा पर सूर्योदय ‘ , ‘ रेगिस्तान ‘ जैसी चंद रचनाओं के अतिरिक्त , कहीं शेष भारत कि झलक दिखाई नहीं देती I यदि हम हिन्दीभाषी , और विशेषकर हिंदी के साहित्यकार दृढ निश्चय करें तो हिंदी साहित्य कि विभिन्न विधाओं में हिंदीतर भारत की कला , सांस्क्रति और इतिहास वर्णित होगा I वहां के गाँव , नगर की परम्पराएं अभिव्यक्त होंगी , वहां की अभिनव प्रकृति चित्रित होगी , तब हिंदी में सम्पूर्ण भारत बोल उठेगा I जब हिंदी में सम्पूर्ण भारत बोलेगा , तब सम्पूर्ण भारत हिंदी बोलेगा I जब सम्पूर्ण भारत हिंदी बोलेगा , तब हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्यधारा में स्थापित होने से कोई रोक नहीं सकेगा I

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